अपनी सारी काविशों को राएगाँ मैं ने किया
अपनी सारी काविशों को राएगाँ मैं ने किया
मेरे अंदर जो न था उस को बयाँ मैं ने किया
सर पे जब साया रहा कोई न दौरान-ए-सफ़र
उस की यादों को फिर अपना साएबाँ मैं ने किया
अब यहाँ पर साँस तक लेना मुझे दुश्वार है
किस तमन्ना पर ज़मीं को आसमाँ मैं ने किया
लम्हा लम्हा वक़्त के हाथों किया ख़ुद को सुपुर्द
सब गँवा बैठा तो फिर फ़िक्र-ए-ज़ियाँ मैं ने किया
जब न उस के और मेरे दरमियाँ कुछ भी रहा
ख़ुद को ही फिर उस के अपने दरमियाँ मैं ने किया
दोनों चुप थे ज़ोर से चलती हवा के सामने
फिर अचानक ख़ुश्क पत्तों को ज़बाँ मैं ने किया
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