Heart Broken Poetry of Azad Gulati (page 1)
नाम | आज़ाद गुलाटी |
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अंग्रेज़ी नाम | Azad Gulati |
जन्म की तारीख | 1935 |
ये मैं था या मिरे अंदर का ख़ौफ़ था जिस ने
समेट लो मुझे अपनी सदा के हल्क़ों में
रौशनी फैली तो सब का रंग काला हो गया
फेंका था हम पे जो कभी उस को उठा के देख
दश्त-ए-ज़ुल्मात में हम-राह मिरे
आज आईने में ख़ुद को देख कर याद आ गया
वो रूह के गुम्बद में सदा बन के मिलेगा
वो जो किसी का रूप धार कर आया था
तुम्हारे पास रहें हम तो मौत भी क्या है
तेरे क़दमों की आहट को तरसा हूँ
सरहद-ए-जिस्म से बाहर कहीं घर लिक्खा था
सरहद-ए-जिस्म से बाहर कहीं घर लिक्खा था
साहिल पे रुक के सू-ए-समुंदर न देखिए
रौशनी फैली तो सब का रंग काला हो गया
फिर इस के बा'द का कोई न हो गुज़र मुझ में
मेरा तो नाम रेत के सागर पे नक़्श है
मैं बिछड़ कर तुझ से तेरी रूह के पैकर में हूँ
मैं अपने आप से इक खेल करने वाला हूँ
लम्हा लम्हा इक नई सई-ए-बक़ा करती हुई
किस ने सदा दी कौन आया है
ख़ला-ए-ज़ेहन के गुम्बद में गूँजता हूँ मैं
कर्ब हरे मौसम का तब तक सहना पड़ता है
कभी मिली जो तिरे दर्द की नवा मुझ को
जो ग़म में जलते रहे उम्र-भर दिया बन कर
हर इक शिकस्त को ऐ काश इस तरह मैं सहूँ
गो मिरा साथ मिरी अपनी नज़र ने न दिया
एक हंगामा बपा है मुझ में
डूब कर ख़ुद में कभी यूँ बे-कराँ हो जाऊँगा
बहुत लम्बा सफ़र तपती सुलगती ख़्वाहिशों का था
अपनी सारी काविशों को राएगाँ मैं ने किया