आज़ाद गुलाटी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का आज़ाद गुलाटी
नाम | आज़ाद गुलाटी |
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अंग्रेज़ी नाम | Azad Gulati |
जन्म की तारीख | 1935 |
ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी!! आ दो घड़ी मिल कर रहें
ये मैं था या मिरे अंदर का ख़ौफ़ था जिस ने
यादों की महफ़िल में खो कर
वो वक़्त आएगा जब ख़ुद तुम्ही ये सोचोगी
वक़्त का ये मोड़ कैसा है कि तुझ से मिल के भी
उसे भी जाते हुए तुम ने मुझ से छीन लिया
तुम्हें भी मुझ में न शायद वो पहली बात मिले
शायद तुम भी अब न मुझे पहचान सको
समेट लो मुझे अपनी सदा के हल्क़ों में
समेट लाता हूँ मोती तुम्हारी यादों के
साल-ए-नौ आता है तो महफ़ूज़ कर लेता हूँ मैं
रौशनी फैली तो सब का रंग काला हो गया
फेंका था हम पे जो कभी उस को उठा के देख
मैं साथ ले के चलूँगा तुम्हें ऐ हम-सफ़रो
कुछ ऐसे फूल भी गुज़रे हैं मेरी नज़रों से
किसे मिलती नजात 'आज़ाद' हस्ती के मसाइल से
किस से पूछें रात-भर अपने भटकने का सबब
हर इक ने देखा मुझे अपनी अपनी नज़रों से
एक वो हैं कि जिन्हें अपनी ख़ुशी ले डूबी
देखने वाले मुझे मेरी नज़र से देख ले
दश्त-ए-ज़ुल्मात में हम-राह मिरे
अपनी सारी काविशों को राएगाँ मैं ने किया
आसमाँ एक सुलगता हुआ सहरा है जहाँ
आप जिस रह-गुज़र-ए-दिल से कभी गुज़रे थे
आज आईने में ख़ुद को देख कर याद आ गया
वो रूह के गुम्बद में सदा बन के मिलेगा
वो जो किसी का रूप धार कर आया था
उम्र भर चलते रहे हम वक़्त की तलवार पर
तुम्हारे पास रहें हम तो मौत भी क्या है
तेरे क़दमों की आहट को तरसा हूँ