कहा ये मैं ने भला कब कि मत सज़ा दीजे
मगर क़ुसूर तो मुझ को मिरा बता दीजे
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शफ़क़ हूँ सूरज हूँ रौशनी हूँ
मता-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र रहा हूँ
ये किस मक़ाम पे पहुँचा है कारवान-ए-वफ़ा