उश्शाक़ बहुत हैं तिरे बीमार बहुत हैं
उश्शाक़ बहुत हैं तिरे बीमार बहुत हैं
तुझ हुस्न-ए-दिल-आराम के हक़दार बहुत हैं
ऐ संग-सिफ़त आ के सर-ए-बाम ज़रा देख
इक हम ही नहीं तेरे तलबगार बहुत हैं
बेचैन किए रखती है हर आन ये दिल को
कम-बख़्त मोहब्बत के भी आज़ार बहुत हैं
मिट्टी के खिलौने हैं तिरे हाथ में हम लोग
और गिर के बिखर जाने के आसार बहुत हैं
लिक्खें तो कोई मिस्रा-ए-तर लिख नहीं पाते
और 'ग़ालिब'-ए-ख़स्ता के तरफ़-दार बहुत हैं
ऐ रब्ब-ए-हुनर चश्म-ए-इनायात इधर भी
हर-चंद कि हम तेरे गुनहगार बहुत हैं
'ख़ावर' उसे पा लेने में खो देने का डर है
अंदेशा ओ हसरत के मियाँ ख़ार बहुत हैं
(1237) Peoples Rate This