सफ़र में फ़ासलों के साथ बादबान खो दिया
सफ़र में फ़ासलों के साथ बादबान खो दिया
उतर के पानियों में हम ने आसमान खो दिया
यही कि इन नफ़स-ग़ुबार साअतों के दरमियाँ
हवा ने गीत रह-गुज़र ने सारबान खो दिया
ये कौन सावनों में ख़्वाब देखता है धूप के
ये किस ने ए'तिबार-ए-ग़म पस-ए-गुमान खो दिया
बस एक हर्फ़ का गुदाज़ उस पे क़र्ज़ था सो वो
बिछड़ते वक़्त ख़ामुशी के दरमियान खो दिया
फ़िराक़ मंज़िलों का इक ग़ुबार था कि जिस घड़ी
चराग़-ए-शब ने और दिल ने मेहमान खो दिया
रुतों में एक रुत यहाँ शजर भी काटने की थी
पता चला जब अपने घर का पासबान खो दिया
बचा लिया था ख़्वाब जो मसाफ़तों की धूप से
वो अब्र-ओ-बाद मंज़रों के दरमियान खो दिया
वो नींद अपने बचपने की राह में उजड़ गई
उस आँख ने भी मोजज़ों का इक जहान खो दिया
(960) Peoples Rate This