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इस क़दर ग़म है कि इज़हार नहीं कर सकते - अय्यूब ख़ावर कविता - Darsaal

इस क़दर ग़म है कि इज़हार नहीं कर सकते

इस क़दर ग़म है कि इज़हार नहीं कर सकते

ये वो दरिया है जिसे पार नहीं कर सकते

आप चाहें तो करें दर्द को दिल से मशरूत

हम तो इस तरह का व्यापार नहीं कर सकते

जान जाती है तो जाए मगर ऐ दुश्मन-ए-जाँ

हम कभी तुझ पे कोई वार नहीं कर सकते

जितनी रुस्वाई मिली आप की निस्बत से मिली

आप इस बात से इंकार नहीं कर सकते

आप कर सकते हैं ख़ुशबू को सबा से महरूम

और कुछ साहब-ए-किरदार नहीं कर सकते

एक ज़ंजीर सी पलकों से बंधी रहती है

फिर भी इक दश्त को गुलज़ार नहीं कर सकते

ये गुल-ए-दर्द है इस को तो महकना है हुज़ूर

आप ख़ुशबू को गिरफ़्तार नहीं कर सकते

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