घर दरवाज़े से दूरी पर सात समुंदर बीच
घर दरवाज़े से दूरी पर सात समुंदर बीच
एक अनजाने दुश्मन की है घात समुंदर बीच
फिर ये हारने वाली आँखें जागीं इस धोके में
कोई ख़्वाब भँवर में आया रात समुंदर बीच
अब क्या ऊँचे बादबान पर ख़्वाब सितारा चमके
आँखें रह गईं साहिल पर और हात समुंदर बीच
इस मौसम में कौन कहाँ तक दिया जलाए रक्खे
हवा चले तो डाल से टूटे पात समुंदर बीच
लहर से लहर मिले तो देखो क़तरे की तन्हाई
दिल ऐसी इक बूँद की क्या औक़ात समुंदर बीच
एक कहानी सोच रही है मुझ को कौन कहे
एक जज़ीरा डूब रहा है ज़ात समुंदर बीच
एक सफ़र पतवार का अपना एक सफ़र पानी का
और मुसाफ़िर तन्हा खा गया मात समुंदर बीच
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