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इश्क़ से मैं डर चुका था डर चुका तो तुम मिले - औरंगज़ेब कविता - Darsaal

इश्क़ से मैं डर चुका था डर चुका तो तुम मिले

इश्क़ से मैं डर चुका था डर चुका तो तुम मिले

दिल तो कब का मर चुका था मर चुका तो तुम मिले

जब मैं तन्हा घट रहा था तब कहाँ थी ज़िंदगी

दिल भी ग़म से भर चुका था भर चुका तो तुम मिले

बे-क़रारी फिर मोहब्बत फिर से धोका अब नहीं

फ़ैसला मैं कर चुका था कर चुका तो तुम मिले

मैं तो समझा सब से बढ़ कर मतलबी था मैं यहाँ

ख़ुद पे तोहमत धर चुका था धर चुका तो तुम मिले

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