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गह मश्क़-ए-सितम गाह-ए-करम याद करेंगे - औलाद अली रिज़वी कविता - Darsaal

गह मश्क़-ए-सितम गाह-ए-करम याद करेंगे

गह मश्क़-ए-सितम गाह-ए-करम याद करेंगे

जब तक भी जिएँगे तुम्हें हम याद करेंगे

जब ज़िक्र छिड़ेगा कहीं अरबाब-ए-वफ़ा का

अपने दिल-ए-मरहूम को हम याद करेंगे

दिल अपना है दिल पर तो नहीं ज़ोर किसी का

का'बे में भी हम तुझ को सनम याद करेंगे

जो सज्दा-गह-ए-इश्क़ की रिफ़अत से हैं वाक़िफ़

वो लोग मिरा नक़्श-ए-क़दम याद करेंगे

तौक़ीर बढ़ाई है मिरे सज्दों ने उन की

इक उम्र मुझे दैर-ओ-हरम याद करेंगे

जब बात छिड़ेगी कहीं अरबाब-ए-नज़र की

'साक़ी' को बहुत अहल-ए-क़लम याद करेंगे

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