Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_dddc019cbb7e50803a13162ada144190, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
ख़्वाहिशें दुनिया की बार-ए-दोश-ओ-गर्दन हो गईं - औज लखनवी कविता - Darsaal

ख़्वाहिशें दुनिया की बार-ए-दोश-ओ-गर्दन हो गईं

ख़्वाहिशें दुनिया की बार-ए-दोश-ओ-गर्दन हो गईं

रफ़्ता रफ़्ता मंज़िल-ए-उक़्बा की रहज़न हो गईं

ये हवा कैसी चली इस तंगना-ए-दहर में

शहर जंगल हो गए आबादियाँ बन हो गईं

चल सू-ए-गोर-ए-ग़रीबाँ ऐ हरीस-ए-माल-ओ-ज़र

देख कितनी आरज़ूएँ नज़्र-ए-मदफ़न हो गईं

कैसी रंगा-रंग शक्लें होंगी ऐ जोश-ए-बहार

मिट के जो गुल्गूना-ए-रुख़्सार-ए-गुलशन हो गईं

खुल नहीं सकती कभी कैफ़िय्यत-ए-बुग़्ज़-ओ-हसद

मेरी आहें पर्दा-ए-नामूस-ए-दुश्मन हो गईं

मेरे नग़्मों ने जो पाई क़ल्ब-ए-गुलशन में जगह

शाख़-ए-गुल पर बुलबुलें बार-ए-नशेमन हो गईं

जब मिरे नाले हुए क़द्द-ए-सनोबर से बुलंद

बुलबुलें साकित सर-ए-दीवार-ए-गुलशन हो गईं

जामा-ए-हस्ती हुआ सद-चाक जब मिस्ल-ए-सहर

ज़ीनतें दुनिया की गर्दा-गर्द-ए-दामन हो गईं

(836) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

KHwahishen Duniya Ki Bar-e-dosh-o-gardan Ho Gain In Hindi By Famous Poet Auj Lakhnavi. KHwahishen Duniya Ki Bar-e-dosh-o-gardan Ho Gain is written by Auj Lakhnavi. Complete Poem KHwahishen Duniya Ki Bar-e-dosh-o-gardan Ho Gain in Hindi by Auj Lakhnavi. Download free KHwahishen Duniya Ki Bar-e-dosh-o-gardan Ho Gain Poem for Youth in PDF. KHwahishen Duniya Ki Bar-e-dosh-o-gardan Ho Gain is a Poem on Inspiration for young students. Share KHwahishen Duniya Ki Bar-e-dosh-o-gardan Ho Gain with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.