तिरे फ़लक ही से टूटने वाली रौशनी के हैं अक्स सारे
तिरे फ़लक ही से टूटने वाली रौशनी के हैं अक्स सारे
कहीं कहीं जो चमक रहे हैं हुरूफ़ मेरी इबारतों में
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तिरे फ़लक ही से टूटने वाली रौशनी के हैं अक्स सारे
कहीं कहीं जो चमक रहे हैं हुरूफ़ मेरी इबारतों में
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