आईना आईना तैरता कोई अक्स
और हर ख़्वाब में दूसरा ख़्वाब है
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Rahat Indori
Wasi Shah
Gulzar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1363) Peoples Rate This
मैं छुपा रहूँगा निगाह-ओ-ज़ख़्म की ओट में
ये राह-ए-तलब यारो गुमराह भी करती है
फ़रार के लिए जब रास्ता नहीं होगा
रेल की पटरी ने उस के टुकड़े टुकड़े कर दिए
वो बात थी तो कई दूसरे सबब भी थे
कुछ बदन की ज़बान कहती थी
वो मेरे नाले का शोर ही था शब-ए-सियह की निहायतों में
कुछ और दिन अभी इस जा क़याम करना था
हम ज़मीं की तरफ़ जब आए थे
मैं ख़ुद से दूर था और मुझ से दूर था वो भी
दिल के नज़दीक तो साया भी नहीं है कोई
दिन के हंगामे जिला देते हैं मुझ को वर्ना