मैं कि तुम पे बाज़ हूँ
जहाँ कहीं से तुम ने अपने फ़ासले उठा लिए
वहीं से मेरी इब्तिदा हुई
सैकड़ों नहीफ़ और नज़ार हाथ
आसमान की तरफ़ उठे
और एक साथ उठ के मेरे चारों सम्त
कई सफ़ों में तन गए
मैं तुम्हारे वास्ते
तुम्हारे नाम से
एक ऐसे बाब के दहाने पर खड़ा हूँ
जो हज़ारों सम्तों को रुजूअ है
मैं कि तुम पे बाज़ हूँ
ख़ुदाई की सब ख़ुदाई तुम पे बाज़ है
तुम मिरी तरफ़ झुकी रहो
झुकी रहो
कि इस के बाद मेरे और तुम्हारे जिस्म की
बा-मुराद शिरकतों से एक तंदरुस्त शहर की उमीद है
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