गरचे मैं सर से पैर तलक नोक-ए-संग था
गरचे मैं सर से पैर तलक नोक-ए-संग था
फिर भी वो मुझ से बर-सर-ए-पैकार-ओ-जंग था
लब सिल गए थे अपने अना के सवाल पर
गो दिल ही दिल में मुझ से वो मैं उस से तंग था
मैं आ गया अलांग के हर दश्त हर पहाड़
तेरी सदा पे मुझ पे ठहर जाना नंग था
दुनिया तमाम आतिशीं-धारों की ज़द में थी
लेकिन मैं बे-ख़तर था कि वो मेरे संग था
शीशे की किर्चियाँ सी बदन में उतर गईं
उस का लिबास उस की जसामत पे तंग था
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