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आने वाला तो हर इक लम्हा गुज़र जाता है - अतीक़ुल्लाह कविता - Darsaal

आने वाला तो हर इक लम्हा गुज़र जाता है

आने वाला तो हर इक लम्हा गुज़र जाता है

वो ग़ुबार उड़ता है अम्बार सा धर जाता है

कौन से ग़ार में गिर जाता है मंज़र सारा

किन ख़लीजों में भरा-शहर उतर जाता है

पत्तियाँ सूख के झड़ जाती हैं छट जाते हैं फल

जिस को मौसम कहा करते हैं वो मर जाता है

लम्स की शिद्दतें महफ़ूज़ कहाँ रहती हैं

जब वो आता है कई फ़ासले कर जाता है

इंतिज़ार एक बड़ी उम्र का दरयूज़ा-गर

जो भी आता है कोई सिल यहाँ धर जाता है

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