वैसे तो ज़िंदगी में कुछ भी न उस ने पाया
वैसे तो ज़िंदगी में कुछ भी न उस ने पाया
जब दफ़्न हो गया तो शाएर के भाग जागे
वो सादगी में उन को दो सामईन समझा
बस आठवीं ग़ज़ल पर मुनकिर-नकीर भागे
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वैसे तो ज़िंदगी में कुछ भी न उस ने पाया
जब दफ़्न हो गया तो शाएर के भाग जागे
वो सादगी में उन को दो सामईन समझा
बस आठवीं ग़ज़ल पर मुनकिर-नकीर भागे
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