हमारे इल्म ने बख़्शी है हम को आगाही
ये काएनात है क्या इस ज़मीं पे सब क्या है
मगर बस अपने ही बारे में कुछ नहीं मालूम
मरोड़ कल से जो मेदे में है सबब क्या है
Parveen Shakir
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ताबीरों की हसरत में कैसे कैसे ख़्वाब रहे
खड़ा है गेट पे शाएर मुशाएरे के ब'अद
वैसे तो ज़िंदगी में कुछ भी न उस ने पाया
मर गया
हैं शाएर-ओ-अदीब ओ मुफ़क्किर अज़ीम-तर
ये भी अच्छा है कि सहरा में बनाया है मकाँ
ये हमारी ईद है
''साहब-ज़ादे करते क्या हैं'' लड़की वालों ने पूछा
आगाही
ताँक-झाँक
हम छोड़ के घर अपना आबाद करें सहरा
किस क़दर ज़ालिम ओ वहशी था वो पागल मूज़ी