ये भी अच्छा है कि सहरा में बनाया है मकाँ
अब किराए पे यहाँ साया-ए-दीवार चला
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''साहब-ज़ादे करते क्या हैं'' लड़की वालों ने पूछा
खड़ा है गेट पे शाएर मुशाएरे के ब'अद
ताँक-झाँक
हैं शाएर-ओ-अदीब ओ मुफ़क्किर अज़ीम-तर
नाकाम मोहब्बत का हर इक दुख सहना
ये तिरी ज़ुल्फ़ का कुंडल तो मुझे मार चला
रंग ख़ुशबू गुलाब दे मुझ को
हम छोड़ के घर अपना आबाद करें सहरा
वैसे तो ज़िंदगी में कुछ भी न उस ने पाया
ताबीरों की हसरत में कैसे कैसे ख़्वाब रहे
मर गया
आगाही