हम गर्दिश-ए-गिर्दाब-ए-अलम से नहीं डरते
तूफ़ाँ है अगर आज किनारा भी तो होगा
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फूलों से बहारों में जुदा थे तो हमीं थे
ग़म के बादल दिल-ए-नाशाद पे ऐसे छाए
यूँ तसव्वुर में दबे पाँव तिरी याद आई
जीना है तो जीने का सहारा भी तो होगा
गिरती हुई दीवार का साया था तिरा साथ
मुसव्विर का हाथ