गिरती हुई दीवार का साया था तिरा साथ
फिर भी तिरी बाहोँ से जुदा थे तो हमीं थे
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ग़म के बादल दिल-ए-नाशाद पे ऐसे छाए
हम गर्दिश-ए-गिर्दाब-ए-अलम से नहीं डरते
यूँ तसव्वुर में दबे पाँव तिरी याद आई
फूलों से बहारों में जुदा थे तो हमीं थे
जीना है तो जीने का सहारा भी तो होगा
मुसव्विर का हाथ