फूलों से बहारों में जुदा थे तो हमीं थे

फूलों से बहारों में जुदा थे तो हमीं थे

काँटों की चुभन पे भी फ़िदा थे तो हमीं थे

बाज़ार-ए-तमन्ना में तो हर शख़्स मगन था

हर मोड़ पे दुनिया से ख़फ़ा थे तो हमीं थे

जिस बुत को तसव्वुर में ख़ुदा मान लिया था

उस बुत की निगाहों में ख़ुदा थे तो हमीं थे

अहबाब को हालात की साज़िश का गिला था

हर हाल में राज़ी-ब-रज़ा थे तो हमीं थे

गिरती हुई दीवार का साया था तिरा साथ

फिर भी तिरी बाहोँ से जुदा थे तो हमीं थे

आईना-ए-अय्याम की रंगीन फ़ज़ा में

ऐ 'राज़' गिरफ़्तार-ए-बला थे तो हमीं थे

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