Sad Poetry of Athar Nasik
नाम | अतहर नासिक |
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अंग्रेज़ी नाम | Athar Nasik |
यक़ीन बरसों का इम्कान कुछ दिनों का हूँ
यही बहुत है कि अहबाब पूछ लेते हैं
पल-दो-पल है फिर ये सोना मिट्टी का
मैं तुझे भूलना चाहूँ भी तो ना-मुम्किन है
ख़ुद को किसी की राह-गुज़र किस लिए करें
कभी कभार भी कब साएबाँ किसी ने दिया
गूँगों को ज़बान किस ने दी है
चुप-चाप हब्स-ए-वक़्त के पिंजरे में मर गया