अगर यक़ीन न रखते गुमान तो रखते
अगर यक़ीन न रखते गुमान तो रखते
हम अपने होने का कोई निशान तो रखते
तमाम दिन जो कड़ी धूप में सुलगते हैं
ये पेड़ सर पे कोई साएबान तो रखते
हमारी बात समझ में तो उन की आ जाती
हम अपने साथ कोई तर्जुमान तो रखते
हमें सफ़र का ख़सारा पसंद था वर्ना
मुसाफ़िरत की थकन सर पे तान तो रखते
मुशाहिदात का दर लाज़िमन खुला होता
हम अपनी आँख सू-ए-शम्अ-दान तो रखते
जिला के बैठ गए दामन-ए-सहर 'नासिक'
सितारे टूट रहे थे तो ध्यान तो रखते
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