अतहर नासिक कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अतहर नासिक
नाम | अतहर नासिक |
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अंग्रेज़ी नाम | Athar Nasik |
यक़ीन बरसों का इम्कान कुछ दिनों का हूँ
यहीं कहीं पे अदू ने पड़ाव डाला था
सूरज लिहाफ़ ओढ़ के सोया तमाम रात
न-जाने कौन सी मजबूरियाँ हैं जिन के लिए
मैं उसे सुब्ह न जानूँ जो तिरे संग नहीं
मैं पूछ लेता हूँ यारों से रत-जगों का सबब
कितने मअनी रखता है ज़रा ग़ौर तो कर
बनाना पड़ता है अपने बदन को छत अपनी
यक़ीन बरसों का इम्कान कुछ दिनों का हूँ
यही जो तेरे मिरे दिल की राजधानी थी
यही बहुत है कि अहबाब पूछ लेते हैं
सफ़र भी जब्र है नाचार करना पड़ता है
पल-दो-पल है फिर ये सोना मिट्टी का
पहुँचा दिया उमीद को तूफ़ान-ए-यास तक
मैं तुझे भूलना चाहूँ भी तो ना-मुम्किन है
ख़ुद को किसी की राह-गुज़र किस लिए करें
ख़ुद को किसी की राहगुज़र किस लिए करें
कभी कभार भी कब साएबाँ किसी ने दिया
गूँगों को ज़बान किस ने दी है
चुप-चाप हब्स-ए-वक़्त के पिंजरे में मर गया
अगर यक़ीन न रखते गुमान तो रखते