उस ने मिरी निगाह के सारे सुख़न समझ लिए
फिर भी मिरी निगाह में एक सवाल है नया
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ख़्वाबों के उफ़ुक़ पर तिरा चेहरा हो हमेशा
सौ रंग है किस रंग से तस्वीर बनाऊँ
इक शक्ल हमें फिर भाई है इक सूरत दिल में समाई है
ये धूप तो हर रुख़ से परेशाँ करेगी
तू मिला था और मेरे हाल पर रोया भी था
कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा
क्या वक़्त पड़ा है तिरे आशुफ़्ता-सरों पर
इतने दिन के बाद तू आया है आज
सुकूत-ए-शब से इक नग़्मा सुना है
वो दौर क़रीब आ रहा है
जी न सकूँ मैं जिस के बग़ैर