किसी ना-ख़्वांदा बूढ़े की तरह ख़त उस का पढ़ता हूँ
कि सौ सौ बार इक इक लफ़्ज़ से उँगली गुज़रती है
Wasi Shah
Gulzar
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1038) Peoples Rate This
कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा
बहुत छोटे हैं मुझ से मेरे दुश्मन
ख़्वाबों के उफ़ुक़ पर तिरा चेहरा हो हमेशा
बा-वफ़ा था तो मुझे पूछने वाले भी न थे
रौनक़-ए-बेश-ओ-कम किस के होने से है
मैं तेरे क़रीब आते आते
'अतहर' तुम ने इश्क़ किया कुछ तुम भी कहो क्या हाल हुआ
सोचते और जागते साँसों का इक दरिया हूँ मैं
इक शक्ल हमें फिर भाई है इक सूरत दिल में समाई है
तू मिला था और मेरे हाल पर रोया भी था
दिल की मसर्रतें नई जाँ का मलाल है नया
क्या बात निराली है मुझ में किस फ़न में आख़िर यकता हूँ