हमारे इश्क़ में रुस्वा हुए तुम
मगर हम तो तमाशा हो गए हैं
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इतने दिन के बाद तू आया है आज
वो इश्क़ जो हम से रूठ गया अब उस का हाल बताएँ क्या
कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा
'अतहर' तुम ने इश्क़ किया कुछ तुम भी कहो क्या हाल हुआ
दरवाज़ा खुला है कि कोई लौट न जाए
किसी ना-ख़्वांदा बूढ़े की तरह ख़त उस का पढ़ता हूँ
मैं तेरे क़रीब आते आते
बहुत छोटे हैं मुझ से मेरे दुश्मन
ये धूप तो हर रुख़ से परेशाँ करेगी
साया मेरा साया वो
वो दौर क़रीब आ रहा है