बहुत छोटे हैं मुझ से मेरे दुश्मन
जो मेरा दोस्त है मुझ से बड़ा है
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साया मेरा साया वो
दरवाज़ा खुला है कि कोई लौट न जाए
इतने दिन के बाद तू आया है आज
जी न सकूँ मैं जिस के बग़ैर
मिस्ल-ए-बाद-ए-सबा तेरे कूचे में ऐ जान-ए-जाँ आए हैं
सौ रंग है किस रंग से तस्वीर बनाऊँ
कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा
वो इश्क़ जो हम से रूठ गया अब उस का हाल बताएँ क्या
लम्हों के अज़ाब सह रहा हूँ
न मंज़िल हूँ न मंज़िल-आश्ना हूँ
सोचते और जागते साँसों का इक दरिया हूँ मैं