क्या वक़्त पड़ा है तिरे आशुफ़्ता-सरों पर

क्या वक़्त पड़ा है तिरे आशुफ़्ता-सरों पर

अब दश्त में मिलते नहीं मिलते हैं घरों पर

पहचान लो इस ख़ाक-ए-रह-ए-हिर्स-ओ-हवा को

क़दमों से ये उठती है तो गिरती है सरों पर

ख़ुद अपने ही अंदर से उभरता है वो मौसम

जो रंग बिछा देता है तितली के परों पर

सौग़ात समझते थे जिसे दश्त-ए-वफ़ा की

वो ख़ाक भी सजती नहीं अब अपने सरों पर

उभरा न तिरा हुस्न-ए-ख़द-ओ-ख़ाल अभी तक

तस्वीर तिरी क़र्ज़ है तस्वीर-गरों पर

काँटे भी चुने राह के पत्थर भी हटाए

मंज़िल न हुई सहल मगर हम-सफ़रों पर

फिर पक्के मकानों के मकीं ख़ंदा-ब-लब हैं

यलग़ार है दरियाओं की फिर कच्चे घरों पर

(1420) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Kya Waqt PaDa Hai Tere Aashufta-saron Par In Hindi By Famous Poet Athar Nafees. Kya Waqt PaDa Hai Tere Aashufta-saron Par is written by Athar Nafees. Complete Poem Kya Waqt PaDa Hai Tere Aashufta-saron Par in Hindi by Athar Nafees. Download free Kya Waqt PaDa Hai Tere Aashufta-saron Par Poem for Youth in PDF. Kya Waqt PaDa Hai Tere Aashufta-saron Par is a Poem on Inspiration for young students. Share Kya Waqt PaDa Hai Tere Aashufta-saron Par with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.