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फ़र्ज़ानों की इस बस्ती में एक अजब सौदाई है - अतहर नफ़ीस कविता - Darsaal

फ़र्ज़ानों की इस बस्ती में एक अजब सौदाई है

फ़र्ज़ानों की इस बस्ती में एक अजब सौदाई है

किस के लिए ये हाल है उस का कौन ऐसा हरजाई है

किस के लिए फिरता है अकेला शहर के हंगामों से दूर

कौन है जिस की ख़ातिर उस को तन्हाई रास आई है

किस के लब ओ रुख़्सार की बातें ढल जाती हैं ग़ज़लों में

किस के ख़म-ए-काकुल की कहानी वजह-ए-सुख़न-आराई है

कौन है जिस की महरूमी के दाग़ हैं उस के सीने में

कौन है जिस के ख़्वाबों की इक दुनिया मैं ने सजाई है

क्यूँ उस की आशुफ़्ता-सरी का चर्चा है हम लोगों में

क्यूँ इतनी पुर-कैफ़-ओ-सोज़ उस की शब-ए-तन्हाई है

'अतहर' आओ हम भी उस के दिल की बातें सुन आएँ

कहते हैं दीवाना है वो वहशी है सौदाई है

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