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मिरी मुश्किल अगर आसाँ बना देते तो अच्छा था - अतीक़ुर्रहमान सफ़ी कविता - Darsaal

मिरी मुश्किल अगर आसाँ बना देते तो अच्छा था

मिरी मुश्किल अगर आसाँ बना देते तो अच्छा था

लबों से लब दम-ए-आख़िर मिला देते तो अच्छा था

मैं जी सकता था बस तेरी ज़रा सी इक इनायत से

मिरे हाथों में हाथ अपना थमा देते तो अच्छा था

मिरी बेताब धड़कन को भी आ जाता क़रार आख़िर

मिरे ख़्वाबों की दुनिया को सजा देते तो अच्छा था

तुम्हारी बे-रुख़ी पर दिल मिरा बेचैन रहता था

कभी आदत ये तुम अपनी भुला देते तो अच्छा था

कभी इस जल्द-बाज़ी का समर अच्छा नहीं होता

कोई दिन और चाहत में बिता देते तो अच्छा था

'सफ़ी' आँसू भी दुश्मन बन गए हैं देख ले आख़िर

न इन को ज़ब्त करते तुम बहा देते तो अच्छा था

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