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कोई नहीं हमारा पुर्सान-ए-हाल अब के - अतीक़ुर्रहमान सफ़ी कविता - Darsaal

कोई नहीं हमारा पुर्सान-ए-हाल अब के

कोई नहीं हमारा पुर्सान-ए-हाल अब के

पहले से भी शिकस्ता आया है साल अब के

हिम्मत तो आ गई थी दुख झेलने की लेकिन

आया है ग़म ही चल के इक और चाल अब के

की है बहुत इबादत फ़ुर्क़त में आँसुओं ने

यज़्दाँ तू कर ले उन का कुछ तो ख़याल अब के

बातों की नग़्मगी सब आहों में ढल गई है

फैला उदासियों का कैसा ये जाल अब के

दो लख़्त हो गया है ये दिल-ए-ज़ार अपना

उठा जो दूरियों का फिर से सवाल अब के

बर्ग-ओ-समर से आरी तन्हा शजर हो जैसे

जीवन की है 'सफ़ी'-जी ऐसी मिसाल अब के

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