अन-गिनत अज़ाब हैं रतजगों के दरमियाँ

अन-गिनत अज़ाब हैं रतजगों के दरमियाँ

दर्द बे-हिसाब हैं रतजगों के दरमियाँ

बन चुका है दिल सवाल अब किसी के हिज्र में

इस पे ला-जवाब हैं रतजगों के दरमियाँ

अश्क रोक रोक अब शल हुए हैं हौसले

हर समय इ'ताब हैं रतजगों के दरमियाँ

काश वो मिले कहीं तो बताऊँ मैं उसे

किस क़दर सराब हैं रतजगों के दरमियाँ

सौ चराग़ जल बुझे तीरगी न कम हुई

मुस्तक़िल हिजाब हैं रतजगों के दरमियाँ

क्या बताऊँ हाल मैं उस को अपने दर्द का

वहशतों के बाब हैं रतजगों के दरमियाँ

वो जिन्हें ख़बर नहीं क़ल्ब-ए-ना-सुबूर की

चार-सू जनाब हैं रतजगों के दरमियाँ

एक ग़म चला गया दूसरे ने आ लिया

सिलसिले शिताब हैं रतजगों के दरमियाँ

रख-रखाव में सदा रह के आज तक यहाँ

हालतें ख़राब हैं रतजगों के दरमियाँ

ज़िंदगी की दौड़ में पिछली रुत के ख़्वाब सब

अब भी हम-रिकाब हैं रतजगों के दरमियाँ

आज ये खुला 'सफ़ी' जाँ के और ग़म कई

शामिल-ए-निसाब हैं रतजगों के दरमियाँ

(1267) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

An-ginat Azab Hain Ratjagon Ke Darmiyan In Hindi By Famous Poet Ateequrrahman Safi. An-ginat Azab Hain Ratjagon Ke Darmiyan is written by Ateequrrahman Safi. Complete Poem An-ginat Azab Hain Ratjagon Ke Darmiyan in Hindi by Ateequrrahman Safi. Download free An-ginat Azab Hain Ratjagon Ke Darmiyan Poem for Youth in PDF. An-ginat Azab Hain Ratjagon Ke Darmiyan is a Poem on Inspiration for young students. Share An-ginat Azab Hain Ratjagon Ke Darmiyan with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.