कटी है उम्र यहाँ एक घर बनाने में
कटी है उम्र यहाँ एक घर बनाने में
हया न आई तुम्हें बस्तियाँ जलाने में
बना दिया था जहाँ को ख़ुदा ने कुन कह कर
करोड़ों साल लगे हैं इसे बसाने में
फ़रेब दे के तुम्हें क्या सुकून मिलता है
हमें तो लुत्फ़ मिला है फ़रेब खाने में
अता हो दौलत-ए-ईमाँ हमें भी बे-पायाँ
कमी नहीं है ख़ुदाया तिरे ख़ज़ाने में
हवा के मद्द-ए-मुक़ाबिल चराग़ रख देना
मिज़ाज-ए-इश्क़ रहा है ये हर ज़माने में
'अतीक़' ये ही दुआ है कि रहती दुनिया तक
चराग़-ए-इल्म हो रौशन ग़रीब-ख़ाने में
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