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फ़लक पर कोई साज़िश हो रही है - अतीक़ मुज़फ़्फ़रपुरी कविता - Darsaal

फ़लक पर कोई साज़िश हो रही है

फ़लक पर कोई साज़िश हो रही है

समुंदर पर ही बारिश हो रही है

हटाए जा रहे हैं काम के लोग

निकम्मों पर नवाज़िश हो रही है

दबाया जा रहा है ख़ूबियों को

जिहालत की नुमाइश हो रही है

बुराई चल रही है पीठ पीछे

मगर मुँह पर सताइश हो रही है

नवाज़ा जा रहा है दुश्मनों को

वफ़ादारों से पुर्सिश हो रही है

'अतीक़' अब चल-चलाव की घड़ी है

दुआओं की गुज़ारिश हो रही है

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