मसर्रत और ग़म दोनों की कोई हद ज़रूरी है
मसर्रत और ग़म दोनों की कोई हद ज़रूरी है
किसी भी एक शय का सिलसिला अच्छा नहीं लगता
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मसर्रत और ग़म दोनों की कोई हद ज़रूरी है
किसी भी एक शय का सिलसिला अच्छा नहीं लगता
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