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शिकायत है बहुत लेकिन गिला अच्छा नहीं लगता - अतीक़ असर कविता - Darsaal

शिकायत है बहुत लेकिन गिला अच्छा नहीं लगता

शिकायत है बहुत लेकिन गिला अच्छा नहीं लगता

दिलों की बात है कम हौसला अच्छा नहीं लगता

नमी आँखों में सोज़-ए-दिल का उनवान-ए-तकल्लुम है

मगर ख़ामोश अश्कों का सिला अच्छा नहीं लगता

इधर आना न जाना ही अधर गुम-कर्दा राही है

तज़ब्ज़ुब का मुझे ये मरहला अच्छा नहीं लगता

मसर्रत और ग़म दोनों की कोई हद ज़रूरी है

किसी भी एक शय का सिलसिला अच्छा नहीं लगता

बुरा लगता है हम को इक तनासुब का बिगड़ जाना

कुछ ऐसे लोग हैं जिन को भुला अच्छा नहीं लगता

'अतीक़' ऐसा भी जीना कोई जीना है भला आख़िर

न होवे जिस में जोश-ओ-वलवला अच्छा नहीं लगता

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