मैं तुम से तर्क-ए-तअल्लुक की बात क्यूँ सोचूँ
मैं तुम से तर्क-ए-तअल्लुक की बात क्यूँ सोचूँ
जुदा न जिस्मों से 'अनज़र' कभी भी साए हुए
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मैं तुम से तर्क-ए-तअल्लुक की बात क्यूँ सोचूँ
जुदा न जिस्मों से 'अनज़र' कभी भी साए हुए
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