दिल पे यादों का बोझ तारी है
दिल पे यादों का बोझ तारी है
आज की रात कितनी भारी है
क़ैद की तरह काटते हैं सब
किस ने ये ज़िंदगी गुज़ारी है
सर छुपा कर तिरे दुपट्टे में
ख़ुशबुओं ने थकन उतारी है
ऐसी भीनी महक है बातों में
जैसे ताज़ा गुलों की क्यारी है
दिल-लगी लम्हा-भर की है लेकिन
ज़िंदगी-भर की बे-क़रारी है
ज़ुल्फ़-ओ-रुख़सार की ज़िया ले कर
हम ने अपनी ग़ज़ल सँवारी है
चाह पर किस का ज़ोर है ऐ 'अतीब'
चाह तो ग़ैर इख़्तियारी है
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