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किसी और को मैं तिरे सिवा नहीं चाहता - अताउल हसन कविता - Darsaal

किसी और को मैं तिरे सिवा नहीं चाहता

किसी और को मैं तिरे सिवा नहीं चाहता

सो किसी से तेरा मुवाज़ना नहीं चाहता

कोई कुंद ज़ेहन क़बील से है मिरे ख़िलाफ़

कि वो रौशनी का ही इर्तिक़ा नहीं चाहता

तू हसीन है सो मुग़ालते में न ख़र्च हो

मिरे दोस्त दिल से तुझे ज़रा नहीं चाहता

तिरा वस्ल चाहे रगों में ज़हर उतार दे

तिरे हिज्र का कभी अज़दहा नहीं चाहता

अभी दिल को माज़ी की सोहबतों का मलाल है

नए शहर में कोई आश्ना नहीं चाहता

ये परिंद पेड़ चराग़ तो मिरे साथ हैं

मिरा ख़ानदान मिरी रज़ा नहीं चाहता

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