वो एक शख़्स कि मंज़िल भी रास्ता भी है
वही दुआ भी वही हासिल-ए-दुआ भी है
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गुम हुआ जाता है कोई मंज़िलों की गर्द में
दिलों से ख़ौफ़ निकलता नहीं अज़ाबों का
वो गर्द है कि वक़्त से ओझल तो मैं भी हूँ
जिस की ख़ातिर मैं भुला बैठा था अपने आप को
थोड़ी सी उस तरफ़ भी नज़र होनी चाहिए
लगता नहीं कि उस से मरासिम बहाल हों
भटक रही है 'अता' ख़ल्क़-ए-बे-अमाँ फिर से
उसे अब भूल जाने का इरादा कर लिया है
एक फ़लर्ट लड़की
ये किस अज़ाब में उस ने फँसा दिया मुझ को