भटक रही है 'अता' ख़ल्क़-ए-बे-अमाँ फिर से
भटक रही है 'अता' ख़ल्क़-ए-बे-अमाँ फिर से
सरों से खींच लिए किस ने साएबाँ फिर से
दिलों से ख़ौफ़ निकलता नहीं अज़ाबों का
ज़मीं ने ओढ़ लिए सर पर आसमाँ फिर से
मैं तेरी याद से निकला तो अपनी याद आई
उभर रहे हैं मिटे शहर के निशाँ फिर से
तिरी ज़बाँ पे वही हर्फ़-ए-अंजुमन-आरा
मिरी ज़बाँ पे वही हर्फ़-ए-राएगाँ फिर से
अभी हिजाब सा हाइल है दरमियाँ में 'अता'
अभी तो होंगे लब ओ हर्फ़ राज़-दाँ फिर से
(826) Peoples Rate This