तराश और भी अपने तसव्वुर-ए-रब को
तिरे ख़ुदा से तो बेहतर मिरा सनम है अभी
Anwar Masood
Gulzar
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(829) Peoples Rate This
इश्क़ तो अपने लहू में ही सँवरता है सो हम
आसमानों में भी दरवाज़ा लगा कर देखें
चाहिए क्या तुम्हें तोहफ़े में बता दो वर्ना
मेहनत से मिल गया जो दफ़ीने के बीच था
कहीं जमाल-पज़ीरी की हद नहीं रखता
यूँ मोहब्बत से न हम ख़ाना-ब-दोशों को बुला
क्या क्या न प्यास जागे मिरे दिल के दश्त में
नुमू-पज़ीर हूँ हर दम कि मुझ में दम है अभी
हाँ तुझे भी तो मयस्सर नहीं तुझ सा कोई
वो इक सुख़न ही हमारी सनद न बन जाए
तूफ़ान-ए-बहर ख़ाक डराता मुझे 'तुराब'