कहीं जमाल-पज़ीरी की हद नहीं रखता

कहीं जमाल-पज़ीरी की हद नहीं रखता

मैं बढ़ रहा हूँ तसलसुल से क़द नहीं रखता

ये क़ब्ल ओ बा'द के उस पार की हिकायत है

मिरा दवाम अज़ल और अबद नहीं रखता

वो एक हो के भी हम से गिना नहीं जाता

वो एक हो के भी आगे अदद नहीं रखता

ये उम्र भर की रियाज़त मिरा मुक़द्दर है

तराशता हूँ जिसे ख़ाल-ओ-ख़द नहीं रखता

वो इक सुख़न ही हमारी सनद न बन जाए

वो इक सुख़न जो तुम्हारी सनद नहीं रखता

'तुराब' कासा-ए-दिल पेश कर दिया जाए

सुना है कोई सख़ावत की हद नहीं रखता

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Kahin Jamal-paziri Ki Had Nahin Rakhta In Hindi By Famous Poet Ata Turab. Kahin Jamal-paziri Ki Had Nahin Rakhta is written by Ata Turab. Complete Poem Kahin Jamal-paziri Ki Had Nahin Rakhta in Hindi by Ata Turab. Download free Kahin Jamal-paziri Ki Had Nahin Rakhta Poem for Youth in PDF. Kahin Jamal-paziri Ki Had Nahin Rakhta is a Poem on Inspiration for young students. Share Kahin Jamal-paziri Ki Had Nahin Rakhta with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.