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हम को आगे जाना है - अता आबिदी कविता - Darsaal

हम को आगे जाना है

अपनी मंज़िल पाना है

हम को आगे जाना है

रस्ता है पुर-ख़ार तो क्या

चलना है दुश्वार तो क्या

आगे है दीवार तो क्या

दीवारों को ढाना है

हम को आगे जाना है

अपनी मंज़िल पाना है

इल्म से अल्लाह और नबी

इल्म से अपनी ये हस्ती

इल्म से दीन और दुनिया भी

दीन और दुनिया पाना है

हम को आगे जाना है

अपनी मंज़िल पाना है

अम्न से हम हैं और तुम भी

अम्न है रौनक़ दुनिया की

अम्न से दुनिया है बाक़ी

दुनिया को समझाना है

हम को आगे जाना है

अपनी मंज़िल पाना है

दर्स है ये हर-चंद अदक़

क्यूँ हो इस का हमें क़लक़

माज़ी से अब ले के सबक़

मुस्तक़बिल चमकाना है

हम को आगे जाना है

अपनी मंज़िल पाना है

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