आने वाली कल की दे कर ख़बर गया ये दिन भी
आने वाली कल की दे कर ख़बर गया ये दिन भी
माह-ए-विसाल की शिरयानों में उतर गया ये दिन भी
लम्हा लम्हा साअ'त साअ'त पल पल में तक़्सीम हुआ
रेज़ा रेज़ा होते होते बिखर गया ये दिन भी
उस की ताबानी पर कितने ही सूरज क़ुर्बान हुए
अपने होने का दुख सह कर मगर गया ये दिन भी
सर्द हवा का झोंका था जो सन्नाटो को चीर गया
कितने दिलों पर दस्तक दे कर गुज़र गया ये दिन भी
हम तो अपनी नींदों में ख़्वाबों को जगा कर ख़्वार हुए
मौज-ए-सराब में ढल कर जाने किधर गया ये दिन भी
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