शाएर हूँ और अमीं हूँ उरूस-ए-सुख़न का में
कर्नल नहीं हूँ ख़ान-बहादुर नहीं हूँ मैं
कर्नल सही मैं ख़ान-बहादुर सही 'मजाज़'
अब दोस्तों की ज़िद है तो शाएर नहीं हूँ मैं
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एक जिला-वतन की वापसी
मुजरिम-ए-सरताबी-ए-हुस्न-ए-जवाँ हो जाइए
दिल को महव-ए-ग़म-ए-दिलदार किए बैठे हैं
मुझे साग़र दोबारा मिल गया है
ये आना कोई आना है कि बस रस्मन चले आए
मै-कदा छोड़ के मैं तेरी तरफ़ आया हूँ
बर्बाद-ए-तमन्ना पे इताब और ज़ियादा
इलाहाबाद से
दफ़्न कर सकता हूँ सीने में तुम्हारे राज़ को
जिगर और दिल को बचाना भी है
आप की मख़्मूर आँखों की क़सम
एक ग़मगीन याद