छुप गए वो साज़-ए-हस्ती छेड़ कर
अब तो बस आवाज़ ही आवाज़ है
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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ख़्वाब-ए-सहर
शौक़ के हाथों ऐ दिल-ए-मुज़्तर क्या होना है क्या होगा
फिर किसी के सामने चश्म-ए-तमन्ना झुक गई
शम-ए-रह-गुज़र
बस इस तक़्सीर पर अपने मुक़द्दर में है मर जाना
सब का तो मुदावा कर डाला अपना ही मुदावा कर न सके
दिल को महव-ए-ग़म-ए-दिलदार किए बैठे हैं
जुनून-ए-शौक़ अब भी कम नहीं है
ये मेरे इश्क़ की मजबूरियाँ मआज़-अल्लाह
आप की मख़्मूर आँखों की क़सम
एक जिला-वतन की वापसी
तिफ़्ली के ख़्वाब