ज़हराब-ए-हुस्न
हुस्न इक कैफ़-ए-जावेदानी है
और जो चीज़ है वो फ़ानी है
हुस्न के दिन भी कैफ़-परवर हैं
हुस्न की रात भी सुहानी है
हुस्न की सुब्ह इक शिकस्त-ए-जमील
हुस्न की शाम कामरानी है
ये कुछ अफ़साना-ए-तख़य्युल है
कुछ हक़ीक़त की तर्जुमानी है
कुछ तिरे हुस्न का करिश्मा है
कुछ मिरी तब्अ' की रवानी है
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